महिला पहलवान दिव्या सैन को नहीं मिला प्रो रेसलिंग लीग में मौका। कुश्ती कला में शिखर की ओर अग्रसर दिव्या सैन आज भारत वर्ष की एक बेहतरीन महिला पहलवानो में हैं । दिव्या सैन , गाँव पुरबालियान , जिला मुज्जफर नगर , उत्तर प्रदेश निवासी सूरज पहलवान की बेटी हैं। दिव्या सैन ने महज आठ साल की उम्र से ही अखाडा गुरु राजकुमार गोस्वामी व् बाद में अखाडा गुरु प्रेमनाथ में कुश्ती कला में निपुणता हासिल की। दिव्या सैन ने कुश्ती में कई कीर्तिमान स्थापित किये हैं। उन्होंने मिटटी , मैट के दंगलों में , महिला ही नहीं पुरुष पहलवानो को भी चित कर कुश्तियां जीती हैं । दिव्या की सफलताएं इस प्रकार हैं।
कामनवेल्थ चैंपियनशिप - 1 गोल्ड मैडल। एशिया चैंपियनशिप - 1 गोल्ड , 2 सिल्वर , 2 ब्रोंज पदक। ( सब जूनियर , जूनियर व् सीनियर ) वर्ल्ड चैंपियनशिप - पाँचवाँ स्थान। ( सब जूनियर) सीनियर नेशनल गेम्स - 1 ब्रोंज मैडल नेशनल चैंपियनशिप - 11 गोल्ड , 2 सिल्वर , 2 ब्रोंज. सब जूनियर , जूनियर व् सीनियर ) दिल्ली स्टेट चैंपियनशिप - 17 गोल्ड मैडल ( स्कूल सब जूनियर , जूनियर व् सीनियर ) उत्तर प्रदेश स्टेट चैंपियनशिप - 2 गोल्ड मैडल इण्टर यूनिवर्सिटी - 3 गोल्ड मैडल चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी - 3 गोल्ड मैडल केसरी के खिताब - 6 बार भारत केसरी , 1 राजस्थान केसरी , 1 महारानी किशोरी , 2 उत्तर प्रदेश केसरी , 1 जम्मू कश्मीर प्रदेश केसरी। दिल्ली ओलिंपिक गेम्स - 1 गोल्ड मैडल राजीव गांधी गोल्ड कप - 1 सिल्वर मैडल चन्दगी राम गोल्ड कप - 1 सिल्वर , 2 ब्रोंज। कुल पदकों की संख्या - 62 कामनवेल्थ चैंपियनशिप - 1 गोल्ड मैडल।
यदि किसी भी कसौटी पर पहलवान दिव्या सैन को जांचा जाय तो वह देश के शीर्ष पहलवानो में अपना स्थान बनाये हुए हैं। भारत केसरी का ख़िताब जीतना भी मायने रखता हैं , साथ ही सैकड़ों हजारों लोगो की भीड़ में पुरुष पहलवानो से लोहा लेना अपने आप में एक अनोखी बात ही कही जायेगी। इसी वर्ष जून में 55th डान कोलोव एवं निकिता पेत्रोव इंटरनेशनल कम्पटीशन बुल्गारिया में हुआ था जिसमे भारत के 28 पहलवानो ने भाग लिया। ग्रीको रोमन , फ्रीस्टाइल व् महिला फ्रीस्टाइल तीनो वर्ग में ये कम्पटीशन हुआ। जिसमे बजरंग पुनिया पहलवान का सिल्वर मैडल , ऋतू फोगट ब्रोंज मैडल तथा दिव्या सैन ब्रोंज मैडल लेकर देश का नाम ऊंचा किया।
जिस दिन प्रो रेसलिंग लीग के ऑक्शन हुए , उसके रिजल्ट में पहलवान दिव्या सैन का नाम न देखकर मुझे बहुत दुःख हुआ। पहलवान दिव्या सैन क्यों प्रो रेसलिंग लीग में खेलने की हकदार बनती हैं इस बाबत मैंने अपनी फेसबुक लाइव फीड और यूट्यूब चैनल पर भी बोला। आप भी देख सकते हैं।
इस महिला पहलवान के जीवन पर यूँ तो बहुत कुछ लिखा , बोला जा चूका हैं। लेकिन संक्षेप में आपको बता दूँ की दिव्या एक गरीब परिवार से हैं। जो नाई ( सैन समाज ) बिरादरी से ताल्लुक रखती हैं। और ये तो सब जानते ही हैं की किस तरह उसके पिता ने लंगोट बेचकर अपनी बेटी को पहलवान बनाया। दिव्या के बारे में स्वयं नेता जी माननीय सांसद व् भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष श्री ब्रजभूषण शरण सिंह जी ने भी आम जनमानस को बताया , ताकि कुश्ती के खेल में और बेटियां भी आएं और भले ही वे गरीब हों , दिव्या की तरह नेशनल चैंपियन बने। लेकिन दुःख तब होता हैं जब कुछ लोगों को ये रास नहीं आता। वो किसी भी तरह से आगे बढ़ती हुई इस पहलवान के रास्ते में रोड़े अटकाने से जरा भी नहीं चूकते। अब सवाल यह हैं की अगर इस तरह हिन्दुस्तान में गरीब और निचले तबके से आ रहे खिलाडियों के साथ दुर्भावना पूर्ण व्यवहार होता रहेगा तो कैसे खिलाडी आगे निकलेंगे , उनके माता पिता कैसे अपने बच्चों को खेलने भेजेंगे ?
आज के युग में द्रोणाचार्य नहीं दुर्योधन की जरूरत है। महाभारत काल से आज तक न जाने कितने द्रोणाचार्यों ने अनेकों अनेक एकलव्यों का अंगूठा लेकर उनकी प्रतिभा का गला घोंट दिया। अनेकों अनेक कर्ण सरीखे धुरंधर प्रतिभा के धनियों को अवसरों से वंचित कर दिया। अगर खोजें तो एक लम्बी लिस्ट निकलेगी। लेकिन एक दुर्योधन ही था जो कर्ण के पक्ष में खड़ा हुआ था । उसने एक सूत पुत्र को राज सिंहासन देकर अपना मित्र बनाया और अपनी प्रतिभा को दर्शाने का मौका दिया था । मुझे ये लिखते हुए दुःख तो होता हैं लेकिन सच में आज दुर्योधन सरीखे उन प्रतिभाओं का सम्मान करने वाले , उन्हें मौका देने वाले मित्रों की कमी जरूर खलती हैं।
No comments:
Post a Comment