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Diya Sain is India's one of the best Indian Women Kushti wrestler of present day, scoring 80 medals till date. She is from a family of wrestlers. Her father Suraj Pahalwan and Grand father Sh. Rajinder Singh of Village Purbalian, District Mujaffar Nagar Uttar Pardesh , were also very fine wrestlers of their time. Suraj Pahlwan wanted to make his son Dev Sain a good wrestler. Divya followed on the footsteps of her brother at a very young age . Although from a fortune less family , she went on to become a champion in India.

Tuesday, November 21, 2017

राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में दिव्या काकरान ने 68 किलोग्राम वर्ग में गोल्ड मेडल जीता.

जब पहलवानों के कपड़े बेचने वाले पिता के गले में डाला बेटी ने गोल्ड मेडल राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में दिव्या कारान ने 68 किलोग्राम वर्ग में गोल्ड मेडल जीता.



इंदौर : दिव्या काकरान भारतीय कुशती में नया नाम नहीं है. वह एशियन चैम्पियनशिप में सिल्वर मेडल जीत चुकी है. लेकिन राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में अभी तक गोल्ड नहीं जीता था. लेकिन खास बात यह है कि उसकी साधारण पृष्ठभूमि के रहते वह गोल्ड मेडल जीत सकी. यह बात सामने आई मध्यप्रदेश के इंदौर में आयोजित राष्ट्रीय कुश्ती चैम्पियनशिप के दौरान.

 यह कुछ कुछ फिल्मी अंदाज में ही हो गया जब 19 साल की दिव्या ने 68 किलोग्राम वर्ग में गोल्ड जीत कर बाहर की दौड़ लगा दी तो किसी को समझ ही नहीं आया कि दिव्या कहां जा रही है.




लेकिन दिव्या सीधे पहुची बाहर लगे एक स्टॉल में जहां पहलवानों के कपड़े बिक रहे थे तब तक किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है. इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता. दिव्या ने अपना जीता हुआ मेडल पहलवानों के कपड़े बेचने वाले व्यक्ति के गले डाल दिया जो उसके पिता थे.
ऐसा भावुक पल केवल फिल्मों ही देखा जाता है लेकिन यह हकीकत में हुआ कि अंदर बेटी कुश्ती का फाइनल मैच खेल रही थी और बाहर पिता उसकी मां के सिले हुए पहलवानों के कपड़े बेच रहे थे.



इसी घटना ने सभी को ध्यान खींचा दिव्या की साधारण पृष्ठभूमि पर लेकिन उस वक्त माहौल जश्न का था हो भी क्यों न, यह दिव्या का पहला गोल्ड मेडल जो था राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में.  हालांकि जुलाई में ही उसने एशियन चैम्पियनशिप में सिल्वर मेडल जीता था लेकिन यह मेडल और मौका दिव्या के लिए कुछ ज्यादा ही खास बन पड़ा था.
दिव्या की पहलवानी से चलता किसी तरह घर
दिव्या दिल्ली की रहने वाली है. उसकी मां पहलवानों के लिए कपड़े सिलती हैं और वे कपड़े उसके पिता सूरज काकरान बेचते हैं. घर की स्थिति अच्छी नहीं है लेकिन दिव्या चाहती है कि उसकी पहलवानी से वह घर की आजीविका में खासा  योगदान दे जो हो नहीं पाता है.
हालांकि पिता सूरज का कहना है कि अभी उनका गुजारा दिव्या की कमाई से ही चल पा रहा है शायद यही वजह रही कि उसने इस चैम्पियनशिप में वह उत्तर प्रदेश की ओर से खेलने का फैसला किया  क्योंकि उत्तर प्रदेश में चैम्पियन पहलवानों को अच्छी ईनामी राशि दी जाती है.
दिव्या 10 साल की उम्र से ही लड़कों के साथ पहलवानी में मुकाबला कर रही है. पहले बड़ी मुश्किल से एक लड़का मुकाबले के लिए तैयार हुआ था उसके पिता ने कहा था कि अगर वह लड़के को हरा देती है तो उसे पांच सौ रुपये ईनाम में मिलेंगे. लड़का काफी अच्छा पहलवान था लेकिन दिव्या ने पांच सौ रुपये जीत लिए और आज तक उसने उसे सम्भाल कर रखा है. पांच सौ रुपये की इस जीत के साथ ही दिव्या ने तय कर लिया था कि अब करियर कुश्ती में ही बनेगा.




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